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Friday, December 20, 2024

JNU से पढ़ाई, इंटरनेशनल रिलेशन में PhD…कौन हैं ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ को लेकर विवादों में फंसे नासिर हुसैन?

Syed Naseer Hussain: सैयद नासिर हुसैन राज्यसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद से ही सुर्खियों में हैं. दावा किया गया है कि उनकी जीत के बाद पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे हैं.

सैयद नासिर हुसैन कांग्रेस नेता हैं और वह कर्नाटक के बेल्लारी शहर से आते हैं. उनका जन्म 10 जून, 1970 को हुआ. उनके पिता का नाम सैयद हफीज और माता का नाम अख्तर उन्निसा है.
नासिर हुसैन ने शुरुआती शिक्षा बेल्लारी से हासिल की. इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए मैसूर यूनिवर्सिटी के सेंट फिलोमिना कॉलेज मैसूर में एडमिशन लिया. यहां से उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन किया.
कांग्रेस नेता को पढ़ाई में काफी दिलचस्पी रही है. यही वजह है कि उन्होंने दिल्ली में स्थित प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से भी पढ़ाई की है. वह इंटरनेशनल रिलेशन में एमफिल और इसी सब्जेक्ट में पीएचडी भी कर चुके हैं.
नासिर हुसैन ने 2003 में मेहनाज अंसारी से निकाह किया. इन दोनों के दो बेटे भी हैं, जिनके नाम सैयद हासिर हुसैन और सैयद ताहिर हुसैन हैं. नासिर हुसैन की पत्नी मेहनाज अमेरिकी व्यापार और विकास एजेंसी (यूएसटीडीए) की दक्षिण एशिया प्रमुख हैं.
कांग्रेस नेता नासिर हुसैन कांग्रेस पार्टी से लंबे वक्त से जुड़े हुए हैं. वह तीन सालों तक राष्ट्रीय मीडिया पैनलिस्ट (एआईसीसी) के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं. नासिर यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और कई समितियों के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
डॉ सैयद नासिर हुसैन 23 मार्च 2018 को पहली बार राज्यसभा सांसद बने. 2021 में ही उन्हें राज्यसभा में संसदीय दल का व्हिप बनाया गया. इस तरह वह राज्यसभा में कांग्रेस के बड़े नेता के तौर पर स्थापित हुए.

राज्यसभा चुनाव ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के साथ खेल कर दिया. बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस पहाड़ी राज्य की एकमात्र सीट जीत नहीं पाई. राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस की हार ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कुर्सी पर संकट ला दिया.

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सरकार बचाने के लिए पार्टी हिमाचल में मुख्यमंत्री बदलेगी. पार्टी ने इसके लिए हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंदर सिंह हुड्डा और कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को ऑब्जर्वर बनाकर शिमला भेजा है.

ऑब्जर्वर डीके शिवकुमार ने हिमाचल में सरकार को अस्थिर करने के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. शिवकुमार के मुताबिक सत्ता में आने के लिए भारतीय जनता पार्टी यह साजिश कर रही है.

वरिष्ठ कांग्रेसी पवन बंसल ने हिमाचल के सियासी नाटक को ऑपरेशन लोटस कहा है. बंसल के मुताबिक चंडीगढ़ मेयर चुनाव में हार के बावजूद बीजेपी अपनी नापाक हरकत से बाज नहीं आ रही है.

हालांकि, कांग्रेस के भीतर हिमाचल के इस सियासी ड्रामे के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि विधायकों के बगावत का पैटर्न ऑपरेशन लोटस का है, जिसे समय रहते सुक्खू भांप नहीं पाए.

सुखविंदर सिंह सुक्खू क्यों चूके, 2 पॉइंट्स…

  • राज्यसभा चुनाव में वोटिंग से पहले तक सुक्खू को नहीं पता था कि कितने विधायक बगावत कर रहे हैं, जबकि सरकार का इंटेलिजेंस विभाग उन्हीं के पास है.
  • क्रॉस वोटिंग करने के बाद सभी विधायक पंचकूला चले गए, लेकिन हिमाचल पुलिस उन्हें नहीं रोक पाई. हिमाचल सरकार का गृह विभाग भी सुक्खू के पास ही है.

ऑपरेशन लोटस का लेटेस्ट पैटर्न क्या है?

  • पहले साइलेंट तरीके से विधायक एकजुट होते हैं और किसी बड़े अवसर पर बगावत करते हैं.
  • महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में यह बड़ा अवसर राज्यसभा का चुनाव ही बना है.
  • बगावत करने वाले विधायकों को तुरंत बीजेपी शासित राज्यों में ले जाया जाता है.
  • विधायक तब तक उस राज्य में रहते हैं, जब तक की सरकार गिर नहीं जाती है.
  • विधायकों के बगावत के बाद कानूनी टीम सक्रिय हो जाती है. सरकार गिराने में यह टीम भी अहम भूमिका निभाती है.

अब 3 उदाहरण से इस पैटर्न को समझिए…

1. कर्नाटक में सत्र से पहले विधायक गायब हो गए
सरकार गिराने का यह पैटर्न पहली बार कर्नाटक 2019 में देखा गया. जुलाई 2019 में कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों ने साइलेंट तरीके से बगावत का बिगुल फूंक दिया. विधायकों का नेतृत्व रमेश जरकिहोली कर रहे थे.

सभी विधायक कर्नाटक छोड़ तुरंत गोवा चले गए और फिर वहां से महाराष्ट्र. सरकार गिरने तक विधायकों ने यहीं डेरा डाले रखा. विधायकों के बगावत के बाद राजभवन भी सक्रिय हो गया.

मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. कोर्ट में केस जाने के बाद कुमारस्वामी सरकार ने विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराया, जिसमें उसकी हार हो गई.

2. राज्यसभा चुनाव से पहले विधायक भाग गए
2020 में मध्य प्रदेश में राज्यसभा की 3 सीटों के लिए आयोग ने चुनाव की घोषणा की. चुनाव की घोषणा के कुछ दिन बाद ही कांग्रेस के 27 विधायक गुपचुप तरीके से कर्नाटक भाग गए. सभी विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के थे.

कर्नाटक पहुंचने के बाद विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई.

कमलनाथ ने इसके बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कमलनाथ के इस्तीफा देते ही शिवराज सिंह चौहान ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. राज्यपाल ने इस दावे को स्वीकर लिया और शिवराज को पद की शपथ दिलवा दी.

इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के 27 विधायकों के रिक्त सीट पर उपचुनाव कराए गए, जिसमें से 18 विधायकों ने जीत हासिल की.

3. MLC इलेक्शन के तुरंत बाद निकल गए शिवसैनिक
2022 के जून में महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव प्रस्तावित थे. चुनाव में सभी पार्टियों ने अपने-अपने कैंडिडेट उतारे. मतदान के दौरान शिवसेना के विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी. क्रॉस वोटिंग के तुरंत बाद विधायक सूरत के लिए निकल गए.

विधायकों के सूरत जाते ही महाविकास अघाड़ी सरकार को ऑपरेशन लोटस का डर सताने लगा. इधर, बीजेपी ने अपने विधायकों की किलेबंदी मजबूत कर दी.

सूरत से बागी विधायक गुवाहाटी पहुंच गए और शिवसेना पर ही दावा ठोक दिया. इसी बीच राजभवन एक्टिव हुआ और राजभवन ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन ठाकरे को राहत नहीं मिली. इसके बाद उद्धव ने इस्तीफा दे दिया. उद्धव के इस्तीफा देने के तुरंत बाद एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए. शिंदे ही इस बगावत का नेतृत्व कर रहे थे.

कथित ऑपरेशन लोटस क्या है?
कथित तौर पर यह एक सियासी ऑपरेशन है, जिसे सत्ताधारी बीजेपी के साथ जोड़ा जाता है. सत्ताधारी बीजेपी किसी भी राज्य में विपक्षी पार्टियों के सरकार को अस्थिर करने की जो प्रक्रिया अपनाती है, उस प्रक्रिया को ऑपरेशन लोटस कहा जाता है.

2008 में ऑपरेशन लोटस का जिक्र पहली बार कर्नाटक में हुआ था. उस वक्त कर्नाटक में बहुमत न होते हुए भी भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई थी और विपक्ष के 7 विधायकों को तोड़ दिया था. यह विधायक कांग्रेस और जेडीएस के थे.

संपादक

फिरोज़ खान हबिब खान

BA in mass communication and journalism Mo. 9730614079

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